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नन्हा बीज / नीरजा हेमेन्द्र

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गमले में दबा नन्हा बीज
अपनी कोख से निकलने वाले शिशु को
बाहर नहीं आने देना चाहता
वह अपने पुरखों की दुनिया से
उस समय से वाकिफ़ है
जब वह उनकी कोख में था
उसने देखा था कैसे उनके
हरे-भरे पत्तों, पुश्पों, कलिकाओं को कुचला गया
कैसे उन्हंे धूप में छोड़ दिया गया
सूखने के लिए यूँ ही
मानवता चित्कार उठी जब
उनके निर्जीव तन को जलाया गया
नन्हा बीज अब भी भयभीत है
अपनी कोख से उपजने वाले
शिशु के लिए।