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भय / रंजना जायसवाल

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जब भी
मेरी बच्ची को
बुलाता है कोई पुरूष
प्रेम से
पुचकारता है
फेरता है गालों पर हाथ
देता है चाकलेट
थर-थर काँपने लगती है वह
जा छुपती है घर के
अँधेरे कोनों में
ये क्या किया मैंने
क्यों अखबार पढ़ना
सिखा दिया उसे?