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दाल-रोटी / रंजना जायसवाल

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खेत की नमी में
शान से इठलाती सरसों ने
मेड पर खड़ी अरहर से कहा
“तुम कितनी काली...बदसूरत और खुरदुरी हो
कुछ लगाती क्यों नहीं?
मल्टीनेशनल्स के इतने सारे प्रोडक्ट्स तो हैं”
अरहर ने मुस्कुराते हुए कहा –
‘तुम हो बहुत गोरी... सुंदर और सुकोमल
तभी तो नोची –खसोटी,काटी जाती हो
बचपन से ही
बाल –सखा गेहूँ से भी नहीं चढ़ पाता
तुम्हारा प्रेम परवान
उसके पहले ही तुम्हें काटकर मार -पीटकर
फिर पेरकर निकाल लिया जाता है तेल
और खत्म हो जाता है
तुम्हारा स्वतंत्र अस्तित्व
वैसे दली जाती हूँ मैं भी परिपक्व होने पर
पर दलने के बाद निखर आता है मेरा रूप –रंग
दुनियादारी से पिस चुका तुम्हारा प्रेमी गेहूँ
आ मिलता है मुझसे
फिर हम होते हैं सबसे हिट जोड़ी
सबका पसंदीदा भोजन
सबका मुद्दा
दाल-रोटी
और जब तुम्हें जलाकर
बघारा जाता है मुझे
गले लगा लेती हूँ
काली –कलूटी हो चुकी तुम्हें
और चटख हो जाती हूँ मैं