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फसल / राजेश शर्मा ‘बेक़दरा’

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दूर-दूर तक
सुनसान रातों में
सन्नाटे में
दिखते नहीं हो तुम

परन्तु
प्रतिपल
तुम्हारे होने का आभास
मेरा मन का भ्रम नहीं हैं
बल्कि तुम्हारे प्रेम बीज का
फल हैं,
जो तुमने अनजाने में फेंके थे
मेरी ह्रदय की बंजर भूमि में
वही आज अंकुरित होकर
मेरे रोम रोम में
विकसित हुए हैं

दुनिया के लिए
यह भ्रम है
लेकिन तुम्हारे बोये बीजों की फसल
इस बार अच्छी हुई हैं