Last modified on 13 अगस्त 2017, at 11:44

पता नहीं / स्वाति मेलकानी

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:44, 13 अगस्त 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=स्वाति मेलकानी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हर साल बारिश में
खिसकते हैं पहाड़
और वह दब जाती है।
बरसात खत्म होने पर
मलवा हटता है
और वह निकलती है
पहले से कमजोर होकर।
जाड़ो की वर्फ में
आग जलाती है
और
गर्मियों में
जलते जंगलो के बीच
खुद झुलस जाती है।
बदलते मौसमों के बीच
छिटक रहे है पहाड़
और वह सिकुडती जा रही है
लगातार।
इस बार बरसात में
फिर खिसकेंगे पहाड़
और एक बार फिर
वह
दब जाएगी।
हर बार की तरह मलवा हटाने पर
वह मिलेगी या नहीं
पता नहीं...