Last modified on 21 अगस्त 2017, at 16:41

बड़ी बड़ी लगे यहाँ सबू की चाल बाउजी / संजय चतुर्वेदी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:41, 21 अगस्त 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय चतुर्वेदी |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ये शायरी में हो रिया है क्या वबाल बाउजी
किसू की दाल में गिरा किसू का बाल बाउजी

बिना बड़ा लिखे हुआ बड़ा कमाल बाउजी
बड़ी बड़ी लगे यहां सबू की चाल बाउजी

किसू ने कर दिया कहीं जो इक सवाल बाउजी
हया से सुर्ख़ हो गए किसू के गाल बाउजी

ज़रा कहीं बची रही उसे लिकाल बाउजी
किसू के पास है हुनर किसू को माल बाउजी

ये मुर्गियाँ उन्हीं की हैं ये दाल भी उन्हीं की है
उन्हीं के हाथ में छुरी वही दलाल बाउजी

तजल्ली-ए-तज़ाद में अयां बला का नूर है
इधर से ये हराम है उधर हलाल बाउजी ।

(2005)