Last modified on 26 अगस्त 2017, at 13:55

निर्णय / स्वाति मेलकानी

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:55, 26 अगस्त 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=स्वाति मेलकानी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जब चाहे थे शब्द तुम्हारे
मुझको तुमसे मौन मिला
और जब
तुम्हारा सानिध्य
मेरा एकमात्र संबल था
तब मुझे एकान्त
और
अवसाद के
लम्बे रास्ते से गुजरना पड़ा।
एक असहनीय कालखंड को
जी लेने के बाद
दुःख
और वितृष्णा के
कई जंगल
उग आये है मेरे भीतर...
मेरे सहचर!
आज भी तुम्हीं हो
मेरे निकटतम
और रहोगे तब तक
जब तक रहूँगी मैं स्वयं
किन्तु
मेरे और तुम्हारे
अतिव्याप्त अंशो को
मैं इस क्षण
अलग कर रही हूँ।