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तुम्हारे लिए, बस (कविता) / मधुप मोहता

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कोई सवाल न कर,
सवालों का कोई हिसाब नहीं।

मेरे हर सिम्त बिछी हुई है तनहाई,
यूं, कि मेरे ख़्वाब भी पराए हैं।
जैसे हर सांस, हर इक धड़कन
मुझसे कहती हो,
ज़िंदगी है अभी, उधार कहीं।

तुमसे मांगा है नशा,
नशा, घड़ी भर का,
नशा, जो उतर आए सड़कों पर,
हाशिया, हाशिया, ल़ज़ों की तरह,
ल़ज़ जो कर्ज़ हैं ख़ामोशी के।
अब कोई बात न कर, कि बातों का
तेरी बातों का कोई जवाब नहीं।
कोई सवाल न कर,
सवालों का कोई हिसाब नहीं।