Last modified on 21 जून 2008, at 12:56

खिला रहता था जिनके प्यार का / साग़र पालमपुरी

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:56, 21 जून 2008 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

खिला रहता था जिनके प्यार का मधुमास आँखों में

वही अब लिख गए हैं विरह का इतिहास आँखों में


करेगी शांत क्या उसको अब उनके प्यार की बरखा

न जाने कौन से जन्मों की है ये प्यास आँखों में


मेरे दिल की अयोध्या में न जाने कब हो दीवाली

झलकता है अभी तो राम का बनवास आँखों में


पवन जब मन के दरवाज़े पे हल्की—सी भी दस्तक दे

तो लौट आता है फिर खोया हुआ विश्वास आँखों में


उभरती है पुरानी चोट कोई जब कसक बनकर

तो जाग उठता है फिर से दर्द का एहसास आँखों में


ये किसके पाँओं की आहट ने चौंकाया मुझे ‘साग़र’!

कि उग आई है तृष्णाओं की कोमल घास आँखों में