Last modified on 19 अक्टूबर 2017, at 16:17

शहर / सुरेश चंद्रा

Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:17, 19 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेश चंद्रा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

शहर
सुबह चहचहाता है, उम्मीद सा

शहर, दिन के शोर मे
कोशिश सा चीखता है

शाम से ही, साध लेता है, चुप्पी, ये शहर
ख़ामोश करता है, नुख्त की सब बोलियाँ

इस शहर के शब औ’ सहर का सिलसिला
मुझ सा ही है सादिक़, और तुम सा ही है !!