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अभी जारी है! / प्रीति 'अज्ञात'

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संघर्ष सिर्फ़ वही नहीं
जो प्रत्यक्ष और दृष्टिमान है
इक लड़ाई भीतर भी
चला करती है कहीं!
अब नि:संकोच हो बोलती वो
हर विषय पर
युद्धरत-सी, इस समाज और
उसके व्यर्थ के रीति-रिवाजों से
करती वाद-विवाद, तर्क-कुतर्क,
सहती ताने, अपमान के असंख्य तीर,
कुछ व्यंग्यात्मक नज़रें भी
पर अब न रही वो 'बेचारी' है!

सबको दिखती ये
'अस्तित्व की खोज में, अचानक
प्रारंभ हुई, एक बेतुकी सोच'
करते हतोत्साहित
आत्मा को चीरने की हद तक
'जीती' नहीं है वो कभी
इस पुरुष प्रधान समाज में
हर रिश्ते ने की 'मौत' उसकी
हर हाल में वो ही 'हारी' है
कर्तव्यों को निभाना
साक्षात परम धर्म उसका
अंतत: 'भारतीय नारी' है!

तो आओ, बांधो ज़ंजीरों से,
कर दो छलनी
शब्दों के अचूक प्रहार से
उड़ाओ मखौल उसके हर
कमजोर विश्वास का
करो लहुलुहान उसे,
घृणित तीखे उपहास से
जी न भरे तो, बिछा दो राहों में
अनगिनत ज़हरीले काँटे भी
पर जीतेगी वही
अब हर हाल में, देखना सभी
न ठहरी, न ठहरेगी, कहीं भी कभी
जान गई अपने 'होने' का मतलब

और इसीलिए
'असत्य' पर 'सत्य' का
'भ्रम' पर 'यथार्थ' का
'द्वंद्व' पर 'अपनत्व' का
'घृणा' पर 'प्रेम' का
'निराशा' पर 'आशा' का
'पराजय' पर 'विजय' का
'पीड़ा' पर 'उल्लास' का
'दर्द' पर 'मुस्कान' का
'हताशा' पर 'उत्साह' का
'आर्तनाद' पर 'आह्लाद' का
'संशय' पर 'विश्वास' का
'मायूसी' पर 'उम्मीद' का
'अहंकार' पर 'स्वाभिमान' का
कर्तव्यों की गठरी संग
अधिकारों की दौड़ का
इस संवेदनहीन दुनिया में
मानवता की खोज का
हर अधूरा संघर्ष...
...अभी जारी है!