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तराना / प्रीति समकित सुराना

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लिख रही हूँ इक तराना प्यार का
याद आया साथ मुझको यार का

न उठती थी पलक भी दीदार को
तरसती थी देखकर दीवार को
फिर इक संदेशा मिला इकरार का
लिख रही हूँ इक तराना...

धड़कनों ने एक लय को था चुना
यूं धड़कना तो न पहले था सुना
फिर छिड़ा था गीत वो इजहार का
लिख रही हूँ इक तराना,...

प्रेम के परिंदे बनाकर घोसला
बस गए थे तब वहां कर हौसला
सह सके न दर्द वक्त की मार का
लिख रही हूँ इक तराना...

सूरज नही बन सका कुछ तो नही
दीप सा भी वो जला पल दो नहीं
फिर दिखा ही क्यूं उजाला प्यार का
लिख रही हूँ इक तराना,..

आज तो बस पीर ही भीतर रही
सोच दोनों की जुदा होकर रही
फिर हुआ था फैसला इक हार का
लिख रही हूँ इक तराना...