Last modified on 29 अक्टूबर 2017, at 16:48

महँगाई-भत्ता / जय चक्रवर्ती

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:48, 29 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जय चक्रवर्ती |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बहुत दिनों के बाद बढ़ा
कुछ महँगाई भत्ता
हरा हुआ जीवन की
बगिया का पत्ता-पत्ता

जोड़-घटाना, गुणा-भाग का
दौर चला दिन-भर
गणित गृहस्थी का आया
थोड़ा आसान नज़र
ऐसा लगा मिली हो जैसे
दिल्ली की सत्ता

नहीं रुकेगा ‘बड़की’ का
अब बी ए बिन पैसे
घर का खर्च चला लेगी
पत्नी जैसे-तैसे
बनवा देंगे ‘छुटकी’ को भी
कुछ कपड़ा- लत्ता

मुन्ने को विद्यालय का
रिक्शा लगवा देंगे
हम बूढ़ी –साइकिल से
अपना काम चला लेंगे
हमे कहाँ जाना रहता है
दिल्ली-कलकत्ता!

महँगाई मे ‘महँगाई-भत्ता‘ ही
क्या कम है!
जीवन के दुखते घावों पर
कुछ तो मरहम है
वेतन तो लगता है
जैसे बर्रै का छत्ता