सुनोÊ सजनी
यह समय है गीत होने का
तुम किचन में हो
न जाने कर रहीं क्या
दालरोटी रोज़ की जो
स्वाद उसमें भर रहीं क्या
चूड़ियों की खनक हमसे
कह रही है
वक्त है यह राग बोने का
कहा वासंती सुबह ने
अभी हमसे
छुवन हो लो
नेहपोथी
जो लिखी थी कनखियों ने
उसे खोलो’
मंत्र उसमें ही
पढ़ा था साथ हमने
क्षीरसागर को बिलोने का
धूप सोनल
सखीÊ उसमें
बसी हैं छवियां तुम्हारी
देह अपनी है बुढ़ाई
किंतु इच्छाएं अभी भी हैं कुंआरी
रसभिगोई रात होगी
वक्त होगा वह
सभी चिंताएं खोने का