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महाभारत / रचना दीक्षित

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जब देखो जहाँ देखो
दिखाई सुनाई पड़ती
महाभारत
पिता-पुत्र द्वन्द
मेरा घर भी
नहीं है अछूता
न चाहते हुए भी
सारा दिन हर पल
होता है यहाँ भी
पिता पुत्र द्वन्द
और कोई नहीं
ये हैं अर्जुन अभिमन्यु
अर्जुन सदैव तत्पर
त्वरित धीर गंभीर
ऑंखें स्थिर
अपने लक्ष्य पर
माँ की कोख से
सीख कर आया
अभिमन्यु
कभी शांत
कभी सौम्य
कभी उत्पाती
चक्रव्यूह में
फंसता, निकलता
हारता, बैठता
पर हार कर भी जीतता
अर्जुन मस्तिष्क है मेरा
जो जीत कर भी हारा
अभिमन्यु दिल है मेरा
जो हार कर भी जीता
जब भी मरा है कोई
अश्वत्थामा की मौत
तो बस मेरा मन