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गिद्ध / रचना दीक्षित

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आज कल एक अजीब सी बीमारी से ग्रसित हूँ
जिधर देखो गिद्ध ही नज़र आते हैं
सुना था मृत शरीर को नोचते हैं ये
पर
ये तो जीवित को ही
कभी मृत समझ बैठते हैं
कभी मृतप्राय बना देते हैं
नोचते हैं देह
गिद्धों की प्रजाति के
हर आकार प्रकार को साकार करते
कुछ बीमार से लगते हैं
पाचन तंत्र अपने चरम पर है पर
भोजन नलिका का मुंह संकरा हो चला है
छोटी से छोटी फाइल अटक जाती है
इलाज के लिए
खाते हैं वो कुछ रंग बिरंगी
आयुर्वेदिक लाल, हरी, नीली, पीली पत्तियां,
और फिर जी उठते हैं
पर्यावरणविद् कहते हैं
लुप्त हो रहे हैं गिद्ध
आज एक बार फिर
न्यूटन ने अपने आप को सत्यापित किया है
उर्जा का ह्रास नहीं होता,
वो एक से दूसरे में परिवर्तित होती है
पेड़ पर गिद्ध भले ही लुप्त हो रहे हों,
पर उनकी उर्जा,
धरती के गिद्धों को
लगातार स्थानांतरित हो रही है