सुना है
सदियों, सदियों, सदियों पहले
धरा पर कुछ था
तो था
विस्फोट, आग, धुआँ
तपिश और जलन
कहते हैं
शायद वही आरंभ था
जीवन का
आज भी
धरा पर कुछ है तो
विस्फोट, आग, धुआँ,
तपिश और जलन
कहीं ये फिर आरम्भ तो नहीं
किसी अंत का?
सुना है
सदियों, सदियों, सदियों पहले
धरा पर कुछ था
तो था
विस्फोट, आग, धुआँ
तपिश और जलन
कहते हैं
शायद वही आरंभ था
जीवन का
आज भी
धरा पर कुछ है तो
विस्फोट, आग, धुआँ,
तपिश और जलन
कहीं ये फिर आरम्भ तो नहीं
किसी अंत का?