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प्रिय उर्मिला / सरस दरबारी

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राम कथा की सबसे उपेक्षित पात्र रही हो तुम!
स्वयं वाल्मीकि और तुलसी ने तुम्हारा जस नहीं गुना,
तुम्हारी पीड़ा को न पहचाना
पुरुष जो थे
स्त्री की पीड़ा को कैसे समझते!
उन्हें तो राम कथा लिखनी थी
सो लिख दी!
विवाहोप्रांत पति का प्रस्थान
अभी भोगा भी न था ब्याहता का सुख
ओढ़ लिया चोला एक विरहिणी का
तज अपनी इच्छा , साध लिया
चौदह वर्ष लंबा मौन
और सो गईं चिर निद्रा में,
कि स्वामी पूरा कर सकें अपना संकल्प
जो उन्होने प्रस्थान पूर्व लिया था।
मेघनाद को वरदान प्राप्त था,
कि वही मनुष्य मार सकता था उसे
जो चौदह वर्ष न सोया हो ।
इस गुरूर से मेघनाद मदमस्त था
कि वह अजेय अमर है ।
कोई मानव जो न सोया हो चौदह वर्ष
असंभव!
चौदह वर्ष जागे थे लक्ष्मण अपलक
रक्षा करते
ज्येष्ठ भ्राता और माँ समान भाभी की ।
लक्ष्मण के इस पराक्रम में
तुम्हारे तप की शक्ति थी।
अगर राम की शक्ति लक्ष्मण थे,
तो लक्ष्मण का बल तुम थीं।
तुम एक गौण चरित्र होकर रह गई,
जिसकी पीड़ा किसी ने न सही
जिसके आँसू किसी ने न देखे
तुम्हारा महिमा मंडन किसी ने न किया
उर्मिला आज तुम्हारी पीड़ा समझ
मन भर आया है।