Last modified on 16 नवम्बर 2017, at 15:07

उसके बिना / अनुराधा सिंह

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:07, 16 नवम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनुराधा सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अब और लड़ा नहीं जाता मुझसे तुमसे
अब और गुरेज नहीं मुझे तुम्हारी बेसिर पैर की बातों से
मैंने कल ही जाना है कि हमेशा नहीं रहोगी मेरे साथ
सबकी माँएं मर जातीं हैं एक दिन

बेतरतीब हो गयी हैं तुम्हारी मांसपेशियाँ
और याददाश्त
शायद हड्डियाँ घिसने से कुछ और छोटी हो गयी हो
बाल भी कहीं हल्के कहीं थोड़े कम हल्के हैं
साँस लेती हो
तो दूर बैठी भी सुन लेती हूँ घरघराहट
फिर भी जब जाओगी
तब मैं
रेशा रेशा बिखर जाऊँगी
तुम्हारे बिन

रात भर मैं तुम्हारे छोटे छोटे भरे होंठों
के गीले चुंबन चिपकाती रही
अपनी हथेलियों से माथे और गालों से उतारकर
जो पोंछ लिए थे मैंने
झुँझला कर एक दिन
मुझे हमेशा खला कि
तुम और माँओं जैसी नहीं थीं
साधारण और शांत
तो क्यों तुम माँ ही निकलीं
सब माँओं सी

जानती थी कि
माँ का मरना बहुत बुरा होता है
शायद दुनिया में सबसे बुरा
नहीं जानती थी
कि यह अपनी देह से बिछड़ना था
मैं कितना अधिक जानती हूँ
इस दुनिया को तुम्हारे बनिस्बत
तुम कितना कम जानती हो इन दिनों
रास्ते नहीं मालूम ज़्यादा कहीं के
कितना डरती हो हर बात से आज कल
मरने से भी
फिर भी दूसरी दुनिया की देहरी पर तुम्हें
अकेला भेज दूँगी मैं
बिलकुल अकेला
रुग्ण दुर्बल और भ्रांत।