कभी-कभी
कितना लुभाता है,
कुछ भी ना होना
बैठना...
तो बस बैठे हो जाना
सरकना सरकंडों को छूकर हवाओं का
बस सुनना
कुछ भी न गुनना
कभी-कभी...
कभी-कभी
कितना लुभाता है,
कुछ भी ना होना
बैठना...
तो बस बैठे हो जाना
सरकना सरकंडों को छूकर हवाओं का
बस सुनना
कुछ भी न गुनना
कभी-कभी...