Last modified on 3 दिसम्बर 2017, at 10:32

अभयारण्य / इंदुशेखर तत्पुरुष

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:32, 3 दिसम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इंदुशेखर तत्पुरुष |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

वह सघन हरा वृक्ष
पत्तियां कड़वी जहर
गंध ऐसी कि उबकाई आ जाए
पेड़ फिर भी पेड़ होता है।

अभेद्य दुर्ग की तरह सुरक्षित
लाखों दृश्यादृश्य जीवों का जीवनहार

कड़वा नहीं होता तो बचता क्या
रसलोलुप निगाहों के आखेट से!
बनता क्या कीट-पतंगों का यह
नैसर्गिक अभयारण्य!!