Last modified on 3 दिसम्बर 2017, at 10:42

बरसते तुम / इंदुशेखर तत्पुरुष

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:42, 3 दिसम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इंदुशेखर तत्पुरुष |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बरसते तुम
बरसते जैसे
अम्बर से
कभी पानी-
कभी आग

पुलकित धरती का रोम-रोम
हो जाता हरियल कभी

कभी झुलसा देते
सारी की सारी
खड़ी फसल।