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रफ़्तार / सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना

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वे बहुत तेज दौड़ते हैं
शायद ओलंपिक में भाग लेनेवाले
चुनिंदा धावकों से भी तेज
उन्हें पसंद नहीं
दौड़ने के बजाय
कछुए की चाल वाले
वे अपने ही लोग
जिनके अनुभवी हाथों में
अपनी नन्हीं उंगलियाँ डाले
सीखा था कभी चलना
और हाथों का सहारा छूटते ही
सब कुछ छूटने लगा था पीछे
बस एक नाम के सिवा

उनका मासूम बचपन
उस हवा की तेज रफ़्तार में
बह चला था
जो उनके श्वसन के लिए आयातित हुई थी
बड़े महंगे दामों में
आज वही स्वयं को विजेता बताकर
कछुओं की चाल पर मुस्कुराते हैं
निःश्वसन से मुक्त वायु से
तेज दौड़ का प्रदूषण फैलाते हैं

कछुए की मंथर चाल वाले भी
प्रसन्नता दिखला रहे हैं
उन्हें अब आयातित नहीं करनी पड़ेंगी
भावी पीढ़ियों के लिए
महंगे दामों वाली हवा
क्योंकि अब यह अपने देश में ही
काफी फल -फूल रही है
तेज धावकों के साथ-साथ
उपग्रहों का प्रोत्साहन पा रही है!