Last modified on 26 दिसम्बर 2017, at 17:18

आंधियां : दो / इंदुशेखर तत्पुरुष

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:18, 26 दिसम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इंदुशेखर तत्पुरुष |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सतह के धूल-कण
ऊपर उछालती
चली आती हैं आंधियां
हवा में किरकिरी भरती
करती उजले शिखरों को पांसुल
दरख्तों की चमकदार
हरी पत्तियों को करती घूसर
मगर कब तक ?
ये, जो धुल जाएंगे
बारिश के
एक ही छपाके में।