Last modified on 26 दिसम्बर 2017, at 17:28

उत्तर आधुनिकता : एक / इंदुशेखर तत्पुरुष

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:28, 26 दिसम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इंदुशेखर तत्पुरुष |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

उत्तर की ओर जाने वाला आदमी
कभी नहीं पहुंच पाता
ठीक-ठीक उत्तर पर
कभी नहीं चुकती दिशा
खत्म नहीं होता उत्तर कभी धरती पर
चलते-चलते जबकि आ ही चुका होता है
वह दक्षिण-बिंदु
जहां से चले थे इस गोल धरती पर।
शेष फिर भी बचा रहा उत्तर
... उत्तरोत्तर उत्तर।
और इस तरह सारे अंत
अंतहीन होते हैं।