Last modified on 26 दिसम्बर 2017, at 18:10

राग-विराग : नौ / इंदुशेखर तत्पुरुष

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:10, 26 दिसम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इंदुशेखर तत्पुरुष |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

एक अदालत चल रही दिन-रात
वही वादी, वही प्रतिवादी
वही आरोप-प्रत्यारोप
वकील, दलील, गवाह
कुछ भी तो नया नहीं।
अजीब सनकी है न्यायाधीश
न थकता, न ऊबता
न फैसला सुनाता
न अदालत बर्खास्त ही करता।
तैरना यहां मृत्यु है, डूबना-जीवन।