Last modified on 30 दिसम्बर 2017, at 17:12

विश्वास / पंकज सुबीर

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:12, 30 दिसम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पंकज सुबीर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अबकी बार जब गाँव से चला था
तो मेंड़ पर लगे आम के पेड़ ने
अपनी मंजिरयों वाली
सुगंधित छाँव में
रोक लिया
बोला
बेटा जब तुम पहले पहल शहर गए थे
तो हफ़्ते भर में आ जाते थे ,
फिर तुम महीने भर में लौटने लगे
और अब
साल भर में आए हो
हो सकता है
अगली बार तुम्हें आने में
एक जनम लग जाए
पर विश्वास रखो
मैं तब तक भी प्रतीक्षा करूँगा
और तुम्हें पहचान भी लूँगा
क्योंकि
मेरी एक एक शाख जानती है
उस स्पर्श को
जो तुम्हारे बचपन में
तुम्हारी देह से
मेरी छाल को मिला था
तुम्हारी संतानें शायद अब
इस गाँव में न लौटें
पर मुझे विश्वास है
तुम अगले जनम में
यहाँ अवश्य लौटोगे।