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वसंतागमन / निरुपमा सिन्हा

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1.
धानी से हरा
हरे से पीला
पीले से भूरा होता
अपने अंत की प्रतीक्षा में
भूमि से जा लगा
इठलाता पत्ता
जिसे दुलारती हवा
आज ज़मी पर से भी
हटा देना चाहती है
किसी के आगमन में
क्या इतनी कठोरता
जायज़ है

2.
समिधा सूखे पत्तों की
हवन सरीखी पूरे
वायुमंडल में
उतार रही है
हल्की हल्की गर्माहट
विदा करते समय
न गिरा सके थे
अश्रु-कण
पश्चाताप और प्रायश्चित
करते अविचल पेड़
नही जुटा पा रहे है
अपने लिए कोई
आवरण

3.
अपने आप को
दंड देता विटप
त्याग और परित्याग की
परिभाषा को सूचित करता
कर चुका है अपने मौसम की
भाषा को मौन
अब नही दुहराई जा रही है
हवा से कोई पुरातन गाथा
सहमा है समय की चेतावनी पर
उधर जन्म ले रहा है
एक नया जीवन
पुनर्जन्म की अवधारणा में
संचय करता
पुष्टि के सारे प्रमाण!