मन
कभी चंचल, कभी स्थिर
कल्पनाजनित भ्रमजाल उत्पन करता
आशा,निराशा,अपेक्षाओं और व्याकुलताओं का
मायाजाल बुनता हुआ, कभी
सत्य को मिथ्या और मिथ्या को सत्य में
परिवर्तित करता
यह मन
युद्धरत है निरंतर
विजय पाने को
दुष्टता और बुराई पर
मन
दौड़ लगाता है
अच्छाई और भलाई की
सीमा रेखा छूने को
एक कछुए की तरह
खरगोश रुपी दुश्विचारों को मात दे कर
मन
पथ डूंड लेता है अंतर्मन में झाँक कर
सब पाप कर्मो का बहिष्कार कर
अन्तःत विजयी होता है एक दृढ निश्चयी
मनI