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सड़क / मृदुला शुक्ला

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सड़क रात भर चलती है
कहीं नहीं पहुँचती है सुबह होने तक
वहीं खडी मिलती है
घनीभूत होती धुंध और पिघलते कोहरे के बीच

दोनों तरफ ऊंघते फुटपाथ
चुटकी लेते हैं जम्हाई लेते हुए
सलाह देते है थोडा धीमे चलने की
फुटकर कदमो से

किनारों पर लगे पलाश, कीकर ,अमलताश
फुटपाथ की हाँ में हाँ मिलाते हैं
गिरा कर धुल धुंवे में सनी
पीली, भूरी पत्तियां

सडक के दोनों तरफ बह रही
अधखुली, अध्ढकी छुटभैया
नालियां उफन कर आ जाती हैं
सड़क की छाती पर

अक्सर दोनों तरफ सीवरों में
खदबदाते रहते हैं षड्यंत्र
विषैली गैसों ,घुप्प अंधेरों में
खामोश शोर के साथ

डिवाइडर अड़े रहते हैं
सगोत्र विवाह किये प्रेमियों के बीच
खाप पंचायतों से आखिरी छोर तक
सड़क अंधी गूंगी और बहरी हैं!
सड़क अभिनय रत है !