मेरे माथे पर बिंदी न देख
कुछ आँखें पूछती हैं
तुम मुसलमान हो?
पैरों में बिछुए न देख
पूछती हैं
तुम कुवाँरी हो?
पूजा न करते देख
पूछती हैं
तुम आर्यसमाजी हो?
तुम नास्तिक हो?
मैं धीमे से कहती हूँ
मैं प्रकृति की कृति हूँ
पर, उन आँखों में किरकिराहट आ जाती है
और, वे अपने जेब में रखे बिल्लों में से
एक बिल्ला मेरे माथे पर चस्पा कर देती हैं
मेरे लिए मुश्किल होता है
उन आँखों को कहना कि
तुम भी सबसे पहले यही हो
बस यही
बाकी सब बाद में
पर शायद वो बना दी गई हैं
पहले ये सब