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जूते / अनुपमा तिवाड़ी

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            1
मुझे मेरे नाप के जूते नहीं मिलते
और तुम,
अपने बनाए जूते बदलने को तैयार नहीं
बताओ,
तुम मेरे नाप के जूते बना सकते हो
या
मैं अपने पैर कटवाऊँ?
 
            2

बहुत समय से ढूँढ़ रही हैं
मेरी आंखें,
अच्छे जूतों की दुकान
लेकिन कहीं चमड़ा ठीक नहीं
कहीं केनवास ठीक नहीं
तो कहीं उनकी बनावट ठीक नहीं
मुझे कोई दुकान नहीं दिखी
जिसमें मेरे पैरों के नाप और मन के मुताबिक जूते मिलें
पर, नंगे पैर कैसे रहूँ?
कभी-कभी तो यूँ ही खीजती रहती हूँ अपने पैरों पर
कि ये इतने एड्ड-बड्ड क्यों हैं?
जो किसी जूते में फिट नहीं होते
 
            3
माना कि पैर पहले आए
और
जूते बाद में
लेकिन, अब जूते पैरों से पहले बाज़ार में आ जाते हैं
तो कई बार जूते फिट
और
पैर अनफिट हो जाते हैं
 
            4

 बहुत से लोगों के पैरों में,
चमकीले जूते देख
मैं भी पहुँच गई एक दिन,
भरे बाज़ार की बड़ी-बड़ी दुकानों पर
वैसे ही चमकीले जूते खरीदने
पर उन्हें छू कर देखा तो पाया कि वो जूते,
हड्डी, मांस, खून और मन से नहीं बने थे
उनकी तो बस त्वचा ही चमकीली थी
उस दिन के बाद मैं कभी नहीं गई ऐसी दुकानों पर
क्योंकि
खाली चमकीले जूते,
मेरा कितने दिन साथ देते?