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तुम्हारा चेहरा / श्वेता राय

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तुम्हारा चेहरा
सृष्टि के विशालतम स्वरूप का
लघु रूप है

जिसपर नदियों की तरह बिछी हुई भाव भंगिमाएं
जीवन की प्राणरेखा हैं

ललाट की सिलवटों में फैले बेबीलोन के झूलते बागीचे के नीचे
व्यवस्थति हैं
अलेक्जेंड्रिया के रौशनी घर

जिनकी पहरेदारी करती हैं धनु पिनाक सी भौहें

माया युगीन गर्वीले पत्थरों से निर्मित
तुम्हारे नासिका प्रदेश के प्रखर बिंदु पर
विराजित है कैलाश मानसरोवर जो सजल रखता है अनुभूतियों को

कर्ण द्वार तक फैले हुए सहारा के रण में
जाने कितनी मृग तृष्णाएं
पाती हैं पनाह

धूल के बवंडरों से घिरे आसमान के नीचे
होठों पर मिलती हैं
मीठे जल की बावड़ियाँ

जिनमें डुबकी लगाती इच्छाओं की मछलियाँ, उतर जाती हैं मन के गहरे समन्दर में

चैतन्य
उर्जित
अलौकिक

तुम्हारी इन्हीं मुख मुद्राओं पर लिखते हुए कविता सोचती हूँ

वो स्त्री ही क्या स्त्री
जिसने अपने प्रेमी के चेहरे पर
गुरुदत्त सा ताब न देखा...

【पुरुष सौंदर्य】