Last modified on 6 मार्च 2018, at 11:46

उलझते रिश्ते / सीमा संगसार

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:46, 6 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सीमा संगसार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अंगना बुहारती स्त्रियाँ
अपनी सारी वेदनाओं को
उड़ा देती हैं घर के धूल के साथ!
उनींदी रातों की कहानी
चिपक जाया करती हैं
कमरे की दीवारों पर-

बासी कमरे से आती बू
उदास चेहरे पर
जबरन मुस्कान थोपते हुए
वह सहजता से मिटा देना चाहती है
अपने सारे निशान
बिखरे हुए तिनके की तरह-
बेतरतीब जुल्फों को
करीने से काढ़ती हुई
आड़ी तिरछी बिन्दी को
माथे पर सुनिश्चित कर
आश्वस्त करती है
अपना पता ठिकाना!
झाड़ू कोई उपकरण नहीं
बस एक समाधान है
उलझते बिगड़ते रिश्तों को
तहजीब से रखने की