कहने को तो सब कहते हैं बेटी हम को प्यारी है
किन्तु कोख में अक्सर बेटी ही तो जाती मारी है
जो है बेटी आज वही तो कल जाकर माता बनती
दो कुल को सम्मान दिलाने वाली पर बेचारी है
माता बनकर गोद खिलाती बहन लड़ाती लाड़ रहे
पत्नी बन हर सुख दुख में वो सहधर्मिणी तुम्हारी है
नीयत भेदभाव की त्यागो न्याय करो हर प्राणी का
देती जन्म तुम्हे जो सुख की वह भी तो अधिकारी है
जन्म जन्म तक साथ निभाने का है जो वादा करती
उस का साथ निभाने में होती क्योंकर दुश्वारी है
बेटी को भी अवसर दो तो छू लेगी हर ऊँचाई
बोझ समझकर तो मत पालो कर्ज उसी का भारी है
जूझी कठिन परिस्थितियों से सम्मानित पद भी पाया
धरा गगन को चूम रही है पर अपनों से हारी है