Last modified on 12 अप्रैल 2018, at 15:16

कुर्सी / रामदरश मिश्र

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:16, 12 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामदरश मिश्र |अनुवादक= |संग्रह=मै...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जब वे लोग कुर्सी पर थे
तब ये लोग उन पर चिल्लाते थे
जब ये लोग कुर्सी पर हैं
तब वे लोग विरोध में चिल्ला रहे हैं
इनकी चीख से इनका कुछ नहीं बिगड़ता
बल्कि बनता ही जाता है
ये तो चक्की के पाट की तरह
बारी-बारी ऊपर-नीचे चलते रहते हैं
और जिस जन के हित में
ये परस्पर चिल्लाते हैं
उसे मजे से दलते रहते हैं।
20.9.2013