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लमहे / रामदरश मिश्र

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मैंने कभी महान कार्य के लिए
महान समय की प्रतीक्षा नहीं की
मैं तो धीरे-धीरे लमहों के साथ चलता रहा
लमहे मुझमें
मैं लमहों में ढलता रहा
महान समय तो चले जाते हैं
अपना महान प्रकाश फैला कर
पीछे छूट जाता है एक सन्नाटा
मेरे भीतर के अँधेरे में
लमहे जगमगा रहें हैं जुगनुओं की तरह
और धीरे-धीरे एक गूँज तैर रही है।
-20.9.2014