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माँ / भाग २० / मुनव्वर राना

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किस दिन कोई रिश्ता मेरी बहनों को मिलेगा

कब नींद का मौसम मेरी आँखों को मिलेगा


मेरी गुड़िया—सी बहन को ख़ुद्कुशी करनी पड़ी

क्या ख़बर थी दोस्त मेरा इस क़दर गिर जायेगा


किसी बच्चे की तरह फूट के रोई थी बहुत

अजनबी हाथ में वह अपनी कलाई देते


जब यए सुना कि हार के लौटा हूँ जंग से

राखी ज़मीं पे फेंक के बहनें चली गईं


चाहता हूँ कि तेरे हाथ भी पीले हो जायें

क्या करूँ मैं कोई रिश्ता ही नहीं आता है


हर ख़ुशी ब्याज़ पे लाया हुआ धन लगती है

और उदादी मुझे मुझे मुँह बोली बहन लगती है


धूप रिश्तों की निकल आयेगी ये आस लिए

घर की दहलीज़ पे बैठी रहीं मेरी बहनें


इस लिए बैठी हैं दहलीज़ पे मेरी बहनें

फल नहीं चाहते ताउम्र शजर में रहना


नाउम्मीदी ने भरे घर में अँधेरा कर दिया

भाई ख़ाली हाथ लौटे और बहनें बुझ गईं