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दहेज / हेमा पाण्डेय

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सपने कहाँ खो गए
मन में हजार सपने थे
जिंदगी को एक
नया मोड़ मिलेगा
नई आशायें जागी
मन कहता कभी
ये कभी वह करूँगा
पर सपने जाने
कहा खो गए
शादी का दिन
हजारों की ख़्वाबो
के साथ किया
गृह प्रवेश
मानो हो गया
हो कोई गुनाह
एक ही आवाज
हर तरफ से
क्या क्या लाई हो।
कुछ नहीं लाई
कैसे घर में
शादी कर दी
हो गयी लड़के
की ज़िन्दगी बर्बाद
ये सुनकर मन
था उदास
कह नहीं सकती
आस पास
मन में उठा
एक सवाल
सब कुछ क्या
होता हैं
लड़की और
भावनाओं की
नही होती कद्र
अरमानों को
डालते चिता में
खुशी के लिए
करते है शादी
आशाओ को खोखला
करता है दहेज़
शादी नुमा गुलाब में
कब तक रहेगा ये काटा
कम करता रहेगा
इसकी खूबसूरती को
कब तक कभी मन से
 कभी तन से मारी
जाती रहेगी बेटियाँ