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कविता और पाठक / सुनीता जैन

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कविता हो ज्यों,
गोल और चिकना,
नर्मदा का पत्थर

ज्यों, दिन और रात्रि का
वह छोआ
सन्धि पल

ज्यों पत्तों में छुपे-छुपे
पका वृक्ष पर
अक्षत फल

पाठक? ज्यों,
सूर्य नमस्कार करता
योगी हो,

ज्यों, मेघांे से सूखे में
जल माँग रहा
माली हो

ज्यों फल पकने पर
धीरे-धीरे
नत होती डाली हो