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रच दे माँ / सुनीता जैन

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रच दे माँ, हाथों में मेहँदी
मेहँदी ज्यों ताँबे के जैसी
दमके बदली सूरज ऊपर
छाकर कोई शाम

और शाम को चैत मास की
चुपके-चुपके रंगोली से
फूल खिलें साँसों में जैसे
महके उनका नाम

भर दे माँ, आँखों में काजल
काली सूर्यमुखी के मन-सी
अँज दे मेरी आँख तो देखूँ
देख के जिनको जन्म-जन्म की
थिरक गयी पहचान