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हवाएँ ये / सुनीता जैन

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हवाएँ ये
नरम बिस्तर की
पहली
शीतल छुअन-सी
तुम्हारे भी तो
घर बही होंगी
तुम्हें भी
याद आये क्या
रजाई से गरमाये
देह-स्पर्श
अपने?