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जीवनसंगिनी से / साहिल परमार

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भूरे-से बालों-सा झूमता हुआ तुम्हें उस पहली रात का उजियारा याद है?

आँखों के पीछे उगे आईने में नाचते थे रुनझुन-रुनझुन सपनों के चेहरे
देखे ना देखे कि झीनी-झीनी रेत बन के ऊपर से छप्पर गिरे थे
चन्दा ने घुसकर, झाँक कर दरारों से ताली पे ताली लगाई थी वो याद है?

भूरे-से बालों-सा झूमता हुआ तुम्हें उस पहली रात का उजियारा याद है?

बोतल में लगे हुए ढक्कन-सा मैं और
उस में बाती जैसी तू
हलके उजियारे में खटिया भी गाती थी
किचूड किचूड चैड चूँ
फटी हुई गुदड़ी पर नई-नई चादर र्में सिलवटें ही सिलवटें पड़ी थीं वो याद है?
फटी हुई गुदड़ी पर नई-नई चादर र्में झुर्रियाँ ही झुर्रियाँ पड़ी थीं वो याद है?

भूरे-से बालों-सा झूमता हुआ तुम्हें उस पहली रात का उजियारा याद है?

मूल गुजराती से अनुवाद : स्वयं साहिल परमार