Last modified on 13 मई 2018, at 23:36

याद तुम्हारी आती / नईम

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:36, 13 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नईम |अनुवादक= |संग्रह=पहला दिन मेर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

याद तुम्हारी आती!
लिपे-पुते आँगन में
उछरे दो पाँवों सी-
याद तुम्हारी आती।

महावर भरी एड़ियाँ
दरमा-सी दिरक गईं होंगी दो,
धुँधवाई आँखें भी
रो-रोकर फरक गईं होंगी दो;

फरबों तक पानी में
उतरे दो पाँवों-सी
याद तुम्हारी आती।

दो हथेलियाँ मिलकर
थकीं हुई धान कूटती होंगी,
चूड़ियाँ पुरानी जो
किस्मत-सी रोज फूटती होंगी;

काई में फँसे हुए
गहरे दो पाँवों-सी
याद तुम्हारी आती।

रूखी-सूखी अलकें-
प्रश्नों-सी बिखरी होंगी भारी,
सूरज बिंदिया माथे-
पुछ-पुछ जाती होगी दहिजारी,

भीड़ के अकेले में,
ठहरे दो पाँवों-सी-
याद तुम्हारी आती।