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टुकड़े-टुकड़े आसमान / नईम

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टुकड़े-टुकड़े आसमान होने से बेहतर,
धरती पर हम बीघा दो बीघा ही हो लें।

अपने सँकरे गलियारों नीचे द्वारों की,
दर्शनीय हुंडी पर उछरे आकारों की,
साख नहीं रह गई तनिक भी-
बाँट तराजू वाले मंडी बाज़ारों की।

पड़ा हुआ सिर कहीं, कहीं पर धड़ बेचारा,
औरों को ले जा न सकें तो खुद को ढो लें।

काल अनंत धरा बिपुला की इन शामों से,
निकल सकें यदि हम अंधी खाई-खोहों से,
मिले खुरदरे वर्तमान को लें सीधे हम-
सीखें साखी से, सम्भव हो तो दोहों से।

मार रहा है क्रूर काल थप्पड़ गालों पर,
हँस न सकें अपने पर तो फिर ढंग से रो लें।

उपनिषदों, स्मृतियों और पुराण कथाओं में,
गर्क न कर दें सात जन्म की मिली व्यथाओं में।
रगड़ें, माँजें, धोएँ अपने अर्जित सत को-
लाल न रहें खोजते बैठे हम कथाओं में।

गंगाजल गर मिले नहीं अपने हंसा को,
कुएँ-बावड़ी के खारे पानी से धो लें।