जन्म पर आयोग, जीवन पर कमेटी,
किंतु ये पहुँचे नहीं अब तक किसी परिणाम पर।
कब्ल आने के रपट क्यों,
और कैसे लीक होती?
डर नहीं लगता, अगर
इनकी नियत जो ठीक होती।
राम की किस्तें बकाया हैं सरासर
किंतु नालिश ठोकते ये किसी ग्वाले श्याम पर।
बजट हों या फाइलें
सबकुछ सहज सस्ती बिकाऊ।
शपथविधियों से लगा
सर्वोच्च पद तक हैं दिखाऊ।
रिंद हैं, साक़ी है मयख़ाना भी है
बिक रही घटिया शराबें किंतु ऊँचे दाम पर।
क़ौम का ये आचरण यदि
खु़दगरज कचरा न होता,
स्वर्णरथ गणतंत्र का ये
बेवजह ढचरा न होता।
असल को भेजा मगर दिखते डमी-से
आज फिसले पड़ रहे ये चमचमाते दाम पर।
मृत्यु पर ही सत्र पूरा खींच लेते
सेंक लेते रोटियाँ भी ये मरों के नाम पर।