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नाई बहार / 11 / भिखारी ठाकुर

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प्रसंग:

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दोहा

हित अनहित से हाथर जोड़ के, मांगत 'भिखारी' भीख।
राम नाम सुमिरन करऽ तूँहीं गुरु हम सीख॥

चौपाई

चार पाई के कइनी चरचा। लागत पय प्रस में खरचा॥
दाम एही विधि ऊपर होई. मन में दुःख माने मत कोई॥
केहू कही जे ठगलन दाम। बे-पइसा के चले न काम॥
मेहनत मदत लागल पैसा। दाम ना मिली त लागी कइसा॥
लालच हउए दाल के नून। बेसी परे से होई जबून॥
कमती से फींका रह जाई. एही से दाम समानवा भाई॥
भाई जुकुर लिखलीं कम। एही से बेसी करीं का हम॥
ना पाठ पर पढ़लीं भाई, नाम बहुत दूर पहुँचल जाई॥
कहे 'भिखारी' लिखलीं थोर। विद्या से बानी कमजोर॥

दोहा

नाम भिखारी काम भिखारी, रूप भिखारी मोर॥
ठाट-पलान-मकान भिखारी, भइल उहुँ-दिशि शोर॥