Last modified on 18 मई 2018, at 16:10

वंशीवादन / रामइकबाल सिंह 'राकेश'

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:10, 18 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामइकबाल सिंह 'राकेश' |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

छेड़ी क्यों वंशी के रन्ध्रों पर प्रणव तान?
ओ मेरे रसनिधान परम ध्यान चिन्तयमान!

उठती है हियतल पर ज्वारलहर बार-बार,
बीत गई निशा, बुझी पर न प्यास दुर्निवार,
बिखर गए केशपाश, टूट गिरे पुष्पहार,
निकल गया तन से मन, ठिठके रह गए प्राण!

आग लगी ऐसी सुन रह न गई व्यथा लेश,
जलन हुई ऐसी, जो कुछ भी थे अशुभ शेष,
भस्म हुए सब-के सब जल-जल कर व्याधि-क्लेश,
छूने लग गई धरा लहरों से आसमान!

निरावरण होने का है यह आमन्त्रण क्या?
करने के लिए पूर्ण मेरा सर्वार्पण क्या?
होना व्यवधानरहित नहीं प्रेमदर्शन क्या?
भूल गया अपने को मन-से-मन एकतान!

(15 नवम्बर, 1976)