आदिप्रभाती का अनादिस्वन,
मुखरित मुझमें धन्य-धन्य बनं
आत्मा का यह अमर जागरण,
यज्ञसृष्टि का मूल चिरन्तन,
कलातीत सच्चिदानन्दघन,
जिसका अभिव्यंजन।
मन को पीकर, सोमपूत बन,
श्रवणमनन चिन्तन परिशीलन,
चिदाकाश में जिसका दर्शन,
देता नवजीवन।
अतुलित श्रवणशक्ति के बल पर,
सुनता तीव्र प्रशान्त मन्द्र स्वर,
करता रहता गमन निरन्तर,
जिसका ध्वनि-कम्पन।