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नयनोन्मीलन / रामइकबाल सिंह 'राकेश'

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सूक्ष्म सूक्ष्म से भी क्षण के कम्पन में गोपन,
एक अखण्ड विराट नियम का होता दर्शन।
किसने लिखे हृदय पर खिले कमल षोडशदल?
अपनी ही महिमा से उड़ता जिसका परिमल?

दौड़ रही है धरा निरन्तर किसके रथ पर
नाच रहे किसकी कीली पर ऋतु-सम्वत्सर?
धधक-धधक उठता सागर-तल से बड़वानल,
परिनादित करता उल्का का पटल गगन-तल?

ज्वालामुखी के उद्गार उगलते पत्थर?
उछल-उछल कर अम्बर की नीली चादर पर?
शंकु-दरारों से गर्त्तों से फोड़ धरातल?
किसके महाक्रोध से लपटों में धू-धू जल?

चढ़ता घोर मेघ-गर्जन से त्रिभुवन को ज्वर?
तड़ित कड़कती नभ को कम्प-तरंगों से भर?
उठते सूर्य-पृष्ठ पर लाल-लाल अंगारे?
अन्तरिक्ष से गिरते टूट-टूट कर तारे?

महानाद करता किसके छन्दों में सागर?
झाग उगलता गोलाकार बुलबुलों से भर?
हिमप्रदेश की छाती पर फुफकार छोड़ कर?
भाग रही बर्फीली आँधी हहर-हहर कर?